*शूद्र और शास्त्र पढ़ने का अधिकार*
स्कुल शिक्षा से ही हमें यह बहुत बताया गया है कि प्राचीन काल में शूद्रों को शास्त्र पढ़ने का अधिकार नहीं था ।
पता नहीं कहां से यह गलत विचार आया, पनपा और आगे बढ़ता गया । किसने यह भ्रम पैदा किये और सामाजिक विभाजन की नींव रखी।
वास्तव में तो प्राचीन काल में सभी को अध्ययन का अधिकार था । प्रमाण देने के लिए ही यह पोस्ट लिखी हैं। अपने प्राचीन धर्म ग्रंथों में एक विशेष पक्ष होता है जिसे फलश्रुति कहते हैं । किस शास्त्र को अथवा किस मंत्र को पढ़ने से क्या लाभ मिलता है इसका उल्लेख संबंधित शास्त्र या मंत्र में होता है । उदाहरण के लिए सामान्य रूप से घर में बोली जाने वाली आरती में भी फलश्रुति बताई जाती है जैसे अंधन को आंख मिले ,
कोढन को काया , बांझन को पुत्र मिले ,
निर्धन को माया ..यह फलश्रुति हैं।
ऐसे ही संस्कृत भाषा में लिखे गए सब ग्रंथों में फलश्रुति का भी उल्लेख होता है
अधिकांश ग्रंथों में फलश्रुति का उल्लेख संबंधित मंत्र के जाप की संख्या अथवा उसके साथ के विभिन्न प्रयोगों पर आधारित होता है । (जैसे रुद्राभिषेक जल से करें, दूध से करें, गन्ना रस से करें, शक्कर से करें ,सब का अलग अलग परिणाम होता है यह एक विज्ञान आधारित प्रक्रिया है। हालांकि यहां पर इसका विस्तृत विवेचन करना प्रासंगिक नहीं है।)
ऐसे ही मंत्र जाप और स्त्रोत पाठ से होने वाले परिणामों अर्थात फलश्रुति का भी उल्लेख मिलता है ।
ऐसा ही एक शास्त्रीय ग्रंथ है विष्णु सहस्रनाम जो भीष्म पितामह और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच का संवाद है ।
धार्मिक क्षेत्र में विष्णु सहस्त्रनाम का बड़ा महत्व है। इसके अंत के श्लोकों में इसकी फलश्रुति दी गई है ।
यह विष्णुसहस्रनाम का 123वां श्लोक हैं जिसमें लिखा है *वेदांतगो ब्राह्मण: स्यात क्षत्रियो विजयी भवेत् ।*
*वैश्य धन समृद्ध: स्यात, शुद्र :सुखम वाप्नोति।।*
अर्थात इस विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से अथवा कीर्तन करने से ब्राह्मण वेदांत में निष्णात हो जाता है क्षत्रिय युद्ध में विजय प्राप्त करता है वैश्य व्यापार में धन पाता है और शूद्र सुख को प्राप्त होता है।
यह फलश्रुती आपके तर्क वितर्क का विषय हो सकती है परंतु *यह तो स्पष्ट है कि शूद्र को भी यह पढ़ने का कीर्तन करने का अधिकार था* । फिर यह मनगढ़ंत कल्पना कहां से आई थी की शुद्र शास्त्रों का अध्ययन नहीं कर सकते प्राचीन काल से लेकर महाभारत काल तक तो ऐसी कोई रोक हिंदू धर्म में कभी भी नहीं रही ।
अरब आक्रमण के बाद जब से धर्मांतरण का कार्य प्रारंभ हुआ उसके बाद संभवत यह विकृति आई हो क्योंकि हम सब जानते हैं साम दाम दंड भेद सब प्रकार के उपायों द्वारा अरब आक्रांताओं और मुगल शासकों द्वारा भारत में धर्म परिवर्तन का कार्य बड़े पैमाने पर हुआ। चारों वर्णो को शास्त्र पढ़ने का पूरा अधिकार था,इसका यह पुख्ता प्रमाण हैं। भारत को कमजोर करने के उद्देश्य से फैलाये गये ऐसे अनेक भ्रामक तथ्यों का सप्रमाण खंडन आज की महती आवश्यकता हैं।
✒ #आर्यवर्त #आर्यसंस्कृति #शुद्र_और_शास्त्र_पढ़नेका
_अधिकार